Monday 27 October 2014

काले धन का हिसाब




काले धन का हिसाब   

 Monday,Jun 23,2014

यह संतोषजनक है कि स्विट्जरलैंड सरकार की ओर से यह कहा गया कि वह ऐसे भारतीयों की सूची बना रही है जिन पर संदेह है कि उन्होंने काला धन स्विस बैंकों में जमा कर रखा है, लेकिन देखना यह है कि ऐसी कोई सूची भारत को कब और किस रूप में हासिल होती है? नि:संदेह स्विट्जरलैंड सरकार के इस रुख से विदेश में जमा काले धन का पता लगाने की भारत की कोशिश को बल मिलेगा, लेकिन इस मामले में और भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। यह भी स्पष्ट है कि केवल स्विट्जरलैंड सरकार के सहयोग भरे रुख से बात बनने वाली नहीं है, क्योंकि इस तरह के बैंक दुनिया के अन्य देशों में भी हैं और इसकी भरी-पूरी संभावना है कि वहां भी भारतीयों ने अच्छा खासा धन जमा कर रखा हो। इस धन के संदर्भ में इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि यह केवल कर चोरी के रूप में हासिल किया गया धन नहीं है। इसमें से एक अच्छा-खासा धन वह है जो अवैध और अनुचित तरीके से कमाया गया है। दुनिया के जिन देशों में बिना किसी पूछ-परख के काला धन जमा करने की सुविधा है वे मूलत: विकसित देश हैं और यह जगजाहिर है कि वे अपने दशकों पुराने गोपनीयता कानूनों की आड़ में यह जानकारी देने से बचते रहते हैं कि किन देशों के किन लोगों का किस तरीके का धन उनके बैंकों में जमा है।
नि:संदेह विकसित देश इससे अच्छी तरह परिचित हैं कि उनके यहां के निजी और सरकारी बैंकों में विदेशी लोगों का जो धन जमा है उसमें एक बड़ा हिस्सा गलत तरीके से कमाए गए धन का है, लेकिन वे ऐसी हर कोशिश का विरोध करते हैं जिससे काला धन जमा करने वाले लोगों के नाम उजागर हों और संबंधित देशों की सरकार उनके खिलाफ कोई कार्रवाई कर सके। एक ओर वे दावा करते हैं कि उनके यहां किसी तरह के गलत कार्यो को सहयोग-संरक्षण नहीं दिया जाता और दूसरी ओर काले धन के मामले में वे इसके ठीक विपरीत व्यवहार करते हैं। निराशाजनक यह है कि काले धन की रोकथाम के सिलसिले मेंसंयुक्त राष्ट्र की ओर से पहल किए जाने के बावजूद विकसित देश अपना रवैया बदलने के लिए तैयार नहीं हैं। यही कारण है कि भारत और उसके जैसे अन्य देश चाहकर भी उन लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं जिन्होंने विदेशी बैंकों में बड़ी मात्रा में काला धन जमा कर रखा है। कुछ समय पहले अमेरिका ने कुछ देशों से अपने यहां के लोगों के बैंक खातों की जानकारी हासिल कर ली थी, लेकिन यह एक सच्चाई है कि अमेरिका जैसी स्थिति अन्य देशों की नहीं हो सकती। इन स्थितियों में यह जरूरी हो जाता है कि विकसित देश अपने यहां ऐसे कानून बनाएं जिससे कोई भी उनके यहां काला धन न जमा कर सके। यह भी जगजाहिर है कि कुछ देशों में ऐसे बैंक हैं जो काला धन ही जमा करने का काम करते हैं। विकसित देश इससे अपरिचित नहीं हो सकते कि यह काला धन विकासशील और गरीब देशों में किस तरह गरीबी और असमानता को बढ़ावा दे रहा है। इन स्थितियों में यह उनकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे आगे आएं और ऐसे कदम उठाएं जिससे उनके यहां काला धन न जमा हो सके।
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अब लाएं काला धन     

नवभारत टाइम्स | Jun 24, 2014

बाहर से ब्लैक मनी लाने का पूरा प्रकरण कहीं 'खोदा पहाड़ निकली चुहिया' न साबित हो। एक तरफ स्विट्जरलैंड सरकार ने कहा है कि उसने ऐसे संदिग्ध भारतीयों की सूची तैयार की है, जिन्होंने काला धन स्विस बैंकों में जमा किया हुआ है और स्विस अधिकारी इसे भारत सरकार से साझा करने पर विचार कर रहे हैं। अच्छी बात है। लेकिन दूसरी तरफ स्विट्जरलैंड के प्रमुख बैंकों ने जो रहस्योद्घाटन किया है, उससे पता चलता है कि वहां जमा पैसा हमारे अनुमान से बेहद कम है। जो लोग उस पैसे के बूते भारतीय इकॉनमी के कायापलट का सपना देख या दिखा रहे थे, उन्हें वह राशि सुनकर झटका लग सकता है। स्विट्जरलैंड के केंद्रीय बैंक स्विस नैशनल बैंक (एसएनबी) ने पिछले दिनों अपने बैंकों में जमा धन पर आंकड़े जारी किए, जिसके मताबिक बीते साल स्विस बैंकों में भारतीयों की दौलत 43 फीसद बढ़कर 2.03 अरब फ्रैंक यानी करीब 14 हजार करोड़ रुपये हो गई। अब इतने धन से क्या-क्या किया जाए? चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि विदेशों से काला धन लाकर देशवासियों में बांटा जाएगा। इसका एक तरीका तो यह हो सकता है कि सरकार अपने पहले बजट में (और संभव हो तो कुछ अगले बजटों में भी) वेतनभोगियों को टैक्स से तगड़ी राहत दे दे। लेकिन विदेश में जमा काले धन का ऐसा कोई सदुपयोग तो वह तब करेगी, जब पैसे वापस आएं। यह इतना आसान नहीं है। बीजेपी अपनी पूर्ववर्ती यूपीए सरकार पर इस मामले को उलझाने का आरोप लगाती रही है। अब इसे सुलझाने की जिम्मेदारी उस पर आ गई है। वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि स्विट्जरलैंड से उन्हें कोई औपचारिक सूचना नहीं मिली है, पर वे खुद ही स्विस प्रशासन को लिखकर इसकी प्रक्रिया पूछ रहे हैं। इस संबंध में सरकार जो कर सकती है, उसे करना चाहिए। एसआईटी बनाकर उसने एक सकारात्मक संकेत तो दिया है, हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि बाहर से पैसे लाने का तरीका क्या होगा। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि विदेश से काला धन लाने से कहीं ज्यादा चुनौती देश में काला धन पैदा होने से रोकने और अब तक जमा ऐसे पैसे को बाहर निकालने की है। उनके अनुसार विदेश जाने वाला काला धन घूम-फिरकर हमारे देश में ही आ जाता है और कई लेवल पर उसका निवेश होता रहता है। यही नहीं, कई कारोबारों और यहां तक कि चुनाव में भी ब्लैक मनी का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है, लेकिन इसे एक्सपोज करना आसान नहीं है। एसआईटी जैसी संस्था वहां सफल हो सकती है, जहां कानून के फंदे कारगर हों, लेकिन बड़े पैमाने पर ब्लैक मनी के चलन को रोकने के लिए नीतिगत उपाय जरूरी हैं। सरकार को नहीं भूलना चाहिए कि उसने जनता से काले धन को लेकर बड़े-बड़े वादे कर रखे हैं। यह पैसा देश के बाहर से आए या भीतर से, इसका उपयोग अर्थव्यवस्था के विकास में होना चाहिए।  -
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सुराग और सवाल

जनसत्ता 23 जून, 2014 : शायद पहली बार स्विट्जरलैंड सरकार ने उन संदिग्ध भारतीयों की सूची तैयार की है, जिन्होंने चोरी-छिपे वहां के बैंकों में अपना पैसा जमा किया हुआ है। इस सूची को तैयार करने के साथ ही उसने कहा है कि भारत सरकार से संबंधित जानकारी साझा की जाएगी। इससे वहां भारतीयों के जमा काले धन का पता लगाने की पहल थोड़ी आगे बढ़ी है। निश्चय ही इसका श्रेय हमारे सर्वोच्च न्यायालय को जाता है, जिसने काले धन की बाबत एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए एसआइटी यानी विशेष जांच टीम गठित करने का निर्देश दिया था और इसकी समय-सीमा भी तय कर दी थी। लिहाजा, मोदी सरकार को पिछले महीने एसआइटी के गठन की घोषणा करनी पड़ी। सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज एमबी शाह एसआइटी के अध्यक्ष हैं और एक अन्य पूर्व जज अजित पसायत उपाध्यक्ष। जबकि आय कर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय और खुफिया एजेंसियों के कुछ आला अधिकारी इसमें सदस्य के तौर पर शामिल हैं। स्विट्जरलैंड सरकार ने इस एसआइटी को सहयोग करने का भरोसा दिलाया है। पर अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि वहां जमा काले धन को वापस लाने का रास्ता खुल गया है। अगर स्विस सरकार कोई सूची मुहैया करा भी देती है, तो जैसा कि न्यायमूर्ति शाह ने कहा है, उसका सत्यापन करना होगा। यह पता लगाना होगा कि कौन-सी रकम वास्तव में कर-चोरी और दूसरे अवैध तरीकों का परिणाम है। फिर भी, स्विट्जरलैंड की ताजा घोषणा एक सकारात्मक संकेत जरूर है। स्विट्जरलैंड के बैंक दुनिया भर के तमाम भ्रष्ट लोगों का पैसा गोपनीय ढंग से जमा रखने के लिए बदनाम रहे हैं। पर कुछ बरसों से कई और देशों के भी कुछ बैंक इस कतार में शामिल हैं। यह संभव है कि स्विट्जरलैंड सरकार पर बढ़ते दबाव को देखते हुए बहुतों ने अपना पैसा इसी तरह के दूसरे देशों के बैंकों में स्थानांतरित कर दिया हो। इस पूरे गोरखधंधे की छानबीन कर पाना एक जटिल काम है। यों भारत ने बहुत-से देशों के साथ दोहरे कराधान से बचाव और कर-चोरी रोकने की संधियां कर रखी हैं। पर इनसे अब तक कुछ खास फर्क नहीं पड़ा है। अगर किसी देश ने खातों की जानकारी दी भी, तो तत्परता से जांच और कार्रवाई करने के बजाय टालमटोल का रवैया अख्तियार किया गया। मसलन, 2009 में जर्मनी के कर-विभाग ने, द्विपक्षीय संधि के तहत, जिन भारतीय खाताधारकों के नाम बताए थे, उन पर हमारे आय कर विभाग ने तीन साल तक चुप्पी साधे रखी। आखिरकार सर्वोच्च अदालत के तलब करने पर ही उन खातों का खुलासा हो सका। बहरहाल, स्विट्जरलैंड के ताजा रुख से क्या हासिल होगा, वह आगे की बात है। सवाल है कि यह सारी रकम चोरी-छिपे बाहर कैसे चली जाती है? बाहर जमा काले धन की इतनी चर्चा होती है, पर इसके स्रोत और रास्ते देश के भीतर ही हैं। उन्हें बंद करने के लिए क्या हो रहा है? रिश्वतखोरी और कर-चोरी काला धन बनने के चिर-परिचित तरीके हैं। पर इसका दायरा बहुत फैल चुका है और इसकी प्रक्रिया बहुस्तरीय है। शेयर बाजार में पहचान छिपा कर किए जाने वाले निवेश और बिलों में हेराफेरी से लेकर फर्जी कंपनियां बनाने तक काले धन के बहुत-से रास्ते हैं। ‘मॉरीशस-मार्ग’ से किए जाने वाले निवेश पर भी शक जताया जाता है। काले धन का इससे भी खतरनाक पहलू हथियारों और मादक पदार्थों की तस्करी से जुड़ा हुआ है। जमीन-जायदाद के कारोबार और यहां तक कि चुनावों के भी काले धन से किसी-न-किसी हद तक प्रभावित होने की बात कही जाती है। इसलिए इस मसले को केवल विदेशी गुप्त खातों तक सीमित करके देखना बेहद सरलीकरण होगा। यह जरूरी है कि काले धन को इसके पूरे परिप्रेक्ष्य में देखा जाए, तभी उससे निपटने की समग्र नीति और कार्य-योजना बनाई जा सकेगी।
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काले धन पर नजर  

जनसत्ता 29 मई, 2014 : देश से बाहर जमा भारतीयों के काले धन का पता लगाने के लिए एसआइटी यानी विशेष जांच टीम का गठन नई केंद्र सरकार का पहला बड़ा फैसला है। पर असल में इसका श्रेय सर्वोच्च न्यायालय को जाता है, जिसने इस मामले में एसआइटी गठित करने का निर्देश दे रखा था और इसकी समय-सीमा भी तय कर दी थी। यहां तक कि  एसआइटी किनके नेतृत्व में गठित होगी, यह भी उसने तय कर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एमबी शाह एसआइटी के अध्यक्ष और एक दूसरे सेवानिवृत्त जज अरिजित पसायत उपाध्यक्ष बनाए गए हैं। एसआइटी के सदस्यों में वित्त मंत्रालय और खुफिया एजेंसियों के कई आला अधिकारियों को शामिल किया गया है। इस तरह विदेशों में जमा काले धन का पता लगाने और उसे वापस लाने की उम्मीद से जुड़ी यह शायद पहली गंभीर पहल है। सर्वोच्च अदालत में यह मामला कई साल से एक जनहित याचिका के जरिए चल रहा था। यूपीए सरकार ने इस मामले में टालमटोल भरा रवैया दिखाया, जो इससे भी जाहिर है कि जर्मनी के लिंशटेसटाइन बैंक के सत्रह भारतीय खाताधारकों के नाम पता चलने के तीन साल बाद उजागर हो सके, वह भी सर्वोच्च न्यायालय के दबाव में। भारतीय जनता पार्टी ने 2009 के चुनाव में और इस बार भी काले धन की वापसी को एक बड़ा मुद्दा बनाया। इसके चलते काला धन आम चर्चा का विषय बना है। मगर इस मसले पर राजनीतिक दलों का रवैया एक लोकलुभावन पैंतरे का ही रहा है। यही वजह है कि विदेशों में स्विस बैंकों के खातों के किस्से तो चलते रहते हैं, पर देश में रोज चोरी-छिपे होने वाली कमाई पर सवाल नहीं उठते। एसआइटी की जांच भी बाहर जमा काले धन का पता लगाने के बारे में होगी। इस दिशा में कितनी कामयाबी मिल पाएगी, फिलहाल कहना मुश्किल है। यह मसला बहुत कुछ अन्य देशों की सरकारों के सहयोग पर निर्भर करता है। यों भारत ने दोहरे कराधान से बचाव के करार बहुत-से देशों से कर रखे हैं, पर वहां से काले धन से संबंधित सूचनाएं अपवादस्वरूप ही मिल पाई हैं। मसलन, करार के मुताबिक जर्मनी के आय कर विभाग ने लिंशटेसटाइन बैंक के कई भारतीय खाताधारकों के नाम कुछ साल पहले भारत सरकार को बताए थे। अमेरिका खुलासे के लिए स्विट्जरलैंड पर दबाव बनाने में सफल हो सका, भारत को भी वैसी पुरजोर कोशिश करनी चाहिए। पर काले धन के विदेशी खाते स्विट्जरलैंड के कुछ बैंकों तक सीमित नहीं हैं, इस कतार में कई और देशों के भी कुछ बैंक शामिल हैं। इन बैंकों के धंधे वहां की सरकारों की रजामंदी से ही चलते हैं। इसलिए बाहर जमा काले धन की पूरी तरह पड़ताल कर पाना आसान नहीं होगा। 
गोपनीयता के परदे में होने के कारण ऐसे खातों की बाबत प्रामाणिक जानकारी पाना संभव नहीं हो सका है। पर अनुमान है कि दुनिया भर के गुप्त खातों में जमा रकम में करीब आधी हिस्सेदारी अकेले भारत के भ्रष्ट लोगों की है। पर देश में पैदा होने वाले काले धन का यह एक अंश मात्र होगा। इसलिए बड़ा सवाल यह है कि देश के भीतर जो पैसा कानून की आंख में धूल झोंक कर बनाया जाता है, उसके बारे में कार्रवाई के लिए सरकार कितनी संजीदा है। रिश्वतखोरी और कर-चोरी अवैध कमाई की चिर-परिचित तरकीबें हैं। पर बिलों में धोखाधड़ी, पहचान छिपा कर शेयर बाजार में किए जाने वाले निवेश से लेकर फर्जी कंपनियां चलाने तक काले धन के और ढेरों तरीके हैं, जो हमारी अर्थव्यवस्था की सतह के नीचे बड़े पैमाने पर रोज आजमाए जाते हैं। काले धन की इन प्रक्रियाओं और रास्तों को बंद करने के लिए हमें दूसरे देशों का मुंह नहीं जोहना है। फिर, इस मोर्चे पर सक्रियता क्यों नहीं दिखती है? 

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